Tuesday, April 14, 2009

क्या है कत्थक का नृत्‍य रूप

कथक का नृत्‍य रूप 100 से अधिक घुंघरु‍ओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्‍कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्‍दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्‍तुओं का नाटकीय प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है। कथक का जन्‍म उत्तर में हुआ किन्‍तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।कथक की शैली का जन्‍म ब्राह्मण पुजारियों द्वारा हिन्‍दुओं की पारम्‍परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्‍हें क‍थिक कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई तथा एक नृत्‍य रूप बन गया। उत्तर भारत में मुगलों के आने पर इस नृत्‍य को शाही दरबार में ले जाया गया और इसका विकास ए परिष्कृत कलारूप में हुआ, जिसे मुगल शासकों का संरक्षण प्राप्‍त था और कथक ने वर्तमान स्‍वरूप लिया। इस नृत्‍य में अब धर्म की अपेक्षा सौंदर्य बोध पर अधिक बल दिया गया।
शब्‍द कथक का उद्भव ''कथा'' से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कहानी कहना। पुराने समय में कथा वाचक गानों के रूप में इसे बोलते और अपनी कथा को एक नया रूप देने के लिए नृत्‍य करते। इससे कथा कलाक्षेपम और दक्षिण भारत में हरी कथा का रूप बना और यही उत्तर भारत में कथक के रूप में जाना जाता है। लगभग 15वीं शताब्‍दी में इस नृत्‍य परम्‍परा में मुगल नृत्‍य और संगीत के कारण बड़ा परिवर्तन आया। 16वीं शताब्‍दी के अंत तक कसे हुए चूड़ीदार पायजामे को कथक नृत्‍य की वेशभूषा मान लिया गया। इस नृत्‍य परम्‍परा के दो प्रमुख घराने हैं, इन दोनों को उत्तर भारत के शहरों के नाम पर नाम दिया गया है और इनमें से दोनों ही क्षेत्रीय राजाओं के संरक्षण में विस्‍तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुर घराना।
वर्तमान समय का कथक सीधे पैरों से किया जाता है और पैरों में पहने हुए घुंघरुओं को नियंत्रित किया जाता है। कथक में एक उत्तेजना और मनोरंजन की विशेषता है जो इसमें शामिल पद ताल और तेजी से चक्‍कर लेने की प्रथा के कारण है जो इसमें प्रभावी स्‍थान रखती है तथा इस शैली की सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण विशेषता है। इन नृत्‍यों की वेशभूषा और विषयवस्‍तु मुगल लघु तस्‍वीरों के समान है।
जबकि यह नाट्य शास्‍त्र के समान नहीं हैं फिर भी कथक के सिद्धांत अनिवार्यत: इसके समान ही हैं। यहां हस्‍त मुद्राओं के भरत नाट्यम में दिए जाने वाले बल की तुलना में पद ताल पर अधिक जोर दिया जाता है।

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Saturday, March 7, 2009

बिहार के कलाकार दिखायेंगे जलवा

'बिहार के कलाकार दिखायेंगे जलवा' खबर आठ मार्च २००९ को देशबंधु, दिल्ली के अंक में प्रकाशित हुआ है। पुरी ख़बर पढने के लिए ख़बर पर क्लिक करें.

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Thursday, March 5, 2009

बिहार उत्सव में दिखेगी रंगारंग संस्कृति की झलक

पांच मार्च को नई दुनिया के मेट्रो रंग में बिहार उत्सव की जानकारी दी गई है। पूरा पढने के लिए क्लिक करें।

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Sunday, September 14, 2008

बिहार के बाढ़ पीड़ितों के नाम एक शाम

Dear friends,

This is to inform you that Rag Virag Cultural and Educational Society, New Delhi is organizing "HAMAREE SANSAKRITIK DHAROHAR " for the relief of Bihar flood victims।This is the campaign to support or provide aids to the suffering people and this becomes our responsibility to help them and shows our humanity towards other human being।The disaster in North-eastern Bihar is not just a flood, but its a serious natural calamity of changing of path of a river।This calamity has caused 40 lakh people displaced and homeless for about two years, until the dam is repaired and river goes back to its old path।


Ms।Sheila Dikshit, Honorable Chief Minister of Delhi has given her kind consent to be the Chief Guest as per the following programme:


Date: 16th September (Tuesday)

Time: 6।०० शाम

Venue: Bal Bhawan, Kotla Road, ITO, New Delhi


We take this opportunity to invite you to join the programme। We hope you shall very kindly accept our invitation and hope to see you there with friends and family।


Thanking you and with warm regards,


Yours sincerely,

Punita

Secretary



N.B. Please do come with your family and friends. Kindly treat this letter of mine as the invitation card.

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Sunday, July 13, 2008

नृत्य ही मेरा जीवन है


नृत्य ही मेरा जीवन है

पिछले दिनों अमर उजाला में मेरा एक इंटरव्यू छपा था। यह एक बेहतरीन इंटरव्यू में से एक है, जिसे चित्रकार सीरज सक्सेना ने लिया था। वह एक चित्रकार के अलावा एक लेखक भी हैं। कविता लिखना उनका एक शगल है। जनसत्ता, अमर उजाला, दैनिक भास्कर सहित देश के तमाम पात्र-पत्रिकाओं में वह कला-संस्कृति पर अपनी कलम का जादू बिखेरते रहते है। उनकी चित्र प्रदर्शनी कई शहरों में लगने का अलावा उनकी कूची से सराबोर रंगों के प्रशंसक दूसरे देशों में भी हैं। ...पुनीता


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Thursday, June 12, 2008

समाज में बरक़रार है भेदभाव: पुनीता शर्मा

समाज में बरक़रार है भेदभाव
कुछ दिनों पहले देशबंधु अख़बार ने मेरा एक इंटरव्यू लिया था। मुद्दा महिलाओं की समाज में स्थिति को लेकर था। सोची क्यों न अपने ब्लागर पाठकों से इसे साझा कर लूँ। ...पुनीता

भारत में माना जाता है की हमारे यहाँ स्त्रियाँ काफी प्रगति कर रही हैं। कुछ हद तक यह बात ठीक भी है। लेकिन अभी भी कम पढी-लिखी महिलाओं में यह भावना गहरे तक धंसी हुयी है की स्त्रियाँ पुरूष के मुकाबले कमतर है। हमारे यहाँ स्त्रियाँ समर्पिता की भूमिका में है। धर्म का खासा दबाव है उन पर। पैदा होने से ही उसके अन्दर ऐसे संस्कार दाल दिए जाते हैं। कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जिसमें महिला की सहमति से इसे अंजाम दिया जाता है। उसके अन्दर बचपन से पड़े संस्कार और घर के पुरूष सदस्यों का दबाव उसे ऐसा करने के लिए मजबूर कर देते हैं। इस सम्बन्ध में कत्थक नृत्यांगना पुनीता शर्मा से देशबंधु की बातचीत कुछ यूं है-

हर क्षेत्र में महिलाएं बराबरी से योगदान दे रही हैं, तब फ़िर लड़कियां अवांछित क्यों हैं?
- इसका कारण उनके साथ भेदभाव है। यहाँ शिक्षा और रोजगार में स्त्रियों के साथ भेदभाव की स्थिति है। मैं तो यही कहूंगी की नारी पुरूष के तुलना में अधिक योग्य है। इसीलिए पुरूष प्रधान समाज उसके साथ भेदभाव का रवैया अपनाता है। इसका उदाहरण है- शादी में लड़के और लडकी के उम्र में अन्तर करना। हमारे यहाँ विवाह में विवाह में लड़के की उम्र लडकी की तुलना में तीन से पांच साल अधिक रखी जाती है। क्योंकि लड़कियां लड़कों से शारीरिक व मानसिक रूप से पहले परिपक्व हो जाती है। इस तथ्य को विज्ञान भी मानता है। अगर लडकी की उम्र बराबर होगी, तो वह हर बात आंख मूंदकर स्वीकार नही करेगी। मेरा मानना है की जाति, वर्ग, लिंग, नस्ल के आधार पर भेदभाव नही होना चाहिए।

परवरिश और घर के संस्कार की इसमे कितनी भूमिका है?
-तकरीबन नब्बे फीसदी घरों में लड़के और लडकी के बीच भेदभाव किया जाता है। लड़कियों पर तरह-तरह की बंदिशें लगाई जाती है, जबकि लड़कों को हर तरह की आजादी मिलती है। दिल्ली जैसे महानगर में भी लड़कियों को कहा जाता है की शाम छः बजे तक घर आ जायें।शिक्षा इस मानसिकता को बदलने में कितनी कारगर हो सकती है?-शिक्षा खासतौर से लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई से निश्चित रूप से फर्क आया है। लेकिन इसके जरिये मानसिकता में बदलाव बहुत धीरे-धीरे आ रहा है। क्योंकि महिलाओं को बहुत अधिक दबाया गया है। इसके लिए कुछ कदम भी उठाने होंगे। इसके साथ ही भ्रूण हत्या और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार व भेदभाव को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।

समाज के नजरिये में बदलाव कैसे लाया जा सकता है?
-समाज में जागरूकता फैलाने कर लिए शिक्षा या भाषण व सेमिनार नाकाफी है। इसके लिए व्यावहारिक नजरिया अपनाने की जरुरत है। इसके लिए नुक्कड़ नाटक, बैले, सोप ऑपेरा, नौटंकी जैसे मनोरंजन के माध्यमों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। दिल्ली के नरेला में सत्यवती कालेज की और से नारी शोषण पर एक नुक्कड़ नाटक किया गया। नाटक खत्म होते ही वहां आयी कुछ औरतों ने अपने पतियों से लड़ाई शुरू कर दी की तुम भी तो ऐसे अत्याचार करते हो। यानी इनके जरिये कहीं न कहीं जाग्रति तो आयी है।भ्रूण हत्या पर मैंने 'परचम बनी महिलाएं' नाम से एक बैले के कई शो किए हैं। अभी हाल ही में मैंने झारखण्ड के दुमका में इसका शो किया। दर्शकों में इसे लेकर जबरदस्त प्रतिक्रिया रही और यह झलक मिली की वे इस बुराई को लेकर जागरूक हुए हैं।

अगर आपको इस स्थिति को सुधारने की निर्णायक भूमिका दे दी जाए तो आपका पहला कदम क्या होगा?
-मैं सबसे पहले ऐसा करने वालों पर तगड़ा जुर्माना और दंड देने का प्रावधान करूंगी। लेकिन इसके लिए जांच की लम्बी प्रक्रिया , अदालत आदि की जरूरत नही होगी, बल्कि चीन की तरह मौके पर ही दण्डित किया जाएगा।

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Tuesday, June 10, 2008

लय, ठाह क्या, दुगुन व चौगुन क्या

संगीत और नृत्य एक दूसरे के पूरक हैं। सारी सृष्टि लय पर आधारित है और संगीत भी. शस्त्रीय नृत्य में कई विधाएं हैं जिसमे एक नाम कथक नृत्य का आता है। कथक नृत्य की बारीकियों को जानने के लिए उनमे प्रयोग होने वाले शब्दों को जानना और समझना आवश्‍यक है।
जब तक मूलभूत शब्दावली की जानकारी नही होगी तब तक न तो संगीत में रमा जा सकता है और न ही कत्थक की बारीकियों को जाना जा सकता है। ...पुनीता

चलिए जानते हैं कुछ शब्दावली:-
लय- संगीत में समय के बराबर गति को लय कहते हैं।
लय तीन प्रकार के होते हैं। पहला विलंबित लय, दूसरा मध्य लय और तीसरा द्रुत लय।

ठाह-प्रारंभिक लय जिसमे एक मात्रा में एक मात्रा बोला जाए, ठाह कहते हैं। जैसे, धा, धीं, धीं, धा।

दुगुन- प्रारंभिक लय के एक मात्रा में जब हम दो मात्रा को बोलते हैं तो उसे दुगुन कहते हैं। जैसे, धा धीं, धीं धा

चौगुन- प्रारंभिक लय के एक मात्रा में जब हम चार मात्रा बोलते हैं तो उसे चैगुन कहते हैं। जैसे, धा धिं धि धा

ताली- जब हम ताली बजाकर किसी ताल के विभागों को सूचित करते हैं तो उसे ताली कहते हैं। इस क्रिया को सशब्द क्रिया भी कहते हैं।

खाली- जब हम हवा में हाथ फेंक कर सिर्फ़ इशारों से विभागों को सूचित करते हैं तो उसे खाली कहते हैं। इस क्रिया को निह्शब्द क्रिया भी कहते हैं। खाली का चिह्न ० होता है।

ठेका- किसी भी ताल के मूळ वर्णों को ठेका कहते हैं।
जैसे- दादरा ताल का ठेका
धा धी ना/धा तू ना आदि
ठेका को तबले या पखावज पर बजाया जाता है।

सलामी- राज दरबारों में पहले नर्तक या नर्तकी नृत्य के किसी बंदिश को नाच कर सम पर आ कर राजा को नमस्कार करता था, इस अभिवादन को सलामी कहा जाता था।

तिहाई- किसी बोल समूह को जब हम बराबर - बराबर मात्रा में तीन बार पैरों द्वारा नाचते हैं तो उसे तिहाई कहते हैं।
जारी...

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